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जन्माष्टमी विशेष: दही-हांडी उत्सव की कहानी, 6 लेयर में बनता है पिरामिड, हांडी तोड़ने के लिए 3 मौके दिए जाते हैं

गुजरात और महाराष्ट्र में खासतौर पर मनाया जाने वाला दही-हांडी का आयोजन काफी प्रसिद्ध है। इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है।

लाइफस्टाइल डेस्क. आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। देशभर में दही-हांडी के आयोजन किए जा रहे हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में खासतौर पर मनाया जाने वाला दही-हांडी का आयोजन काफी प्रसिद्ध है। इसकी शुरुआत की कहानी भी काफी दिलचस्प है। बचपन में श्रीकृष्ण बेहद ही नटखट थे, पूरे गांव में उन्हें उनकी शरारतों के लिए जाना जाता था। श्रीकृष्ण को माखन, दही और दूध काफी पसंद था। उन्हें माखन इतना पसंद था कि अपने सखाओं के साथ मिलकर पूरे गांव का माखन चोरी करके खा जाते थे। जानते हैं इसे क्यों मनाते हैं...

कहानी दही-हांडी उत्सव की
वृन्दावन में महिलाओं ने मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया जिससे श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके। लेकिन नटखट कृष्ण की समझदारी के आगे उनकी यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई। माखन चुराने के लिए श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और ऊंचाई पर लटकाई मटकी से दही और माखन को चुरा लेते थे। यहीं प्रेरित होकर दही-हांडी का चलन शुरू हुआ। दही हांडी के उत्सव के दौरान लोग गाने गाते हैं जो लड़का सबसे ऊपर खड़ा होता है उसे गोविंदा कहा जाता है। ग्रुप के अन्य लड़कों को हांडी या मंडल कहकर पुकारा जाता है।
क्या है दही-हांडी उत्सव
इस उत्सव को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मनाया जाता है। लड़कों का ग्रुप मैदान, सड़क या कम्पाउंड में इकट्ठा होता है और एक पिरामिड बनाकर जमीन से 20-30 फुट ऊंचाई पर लटकी मिट्टी की मटकी को तोड़ते है। गुजरात और द्वारका में माखन हांडी की प्रथा काफी प्रसिद्ध है, जहां मटकी को दही, घी, बादाम और सूखे मेवे से भरकर लटकाया जाता है। लड़के ऊपर लटकी मटकी को फोड़ते हैं और अन्य लोग लोकगीतों और भजनों पर नाचते-गाते हैं। 9 लेयर में नीचे-ऊपर तक एक पिरामिड बनाते हैं और हांडी को तोड़ने के लिए 3 मौके दिए जाते हैं। पुरस्कार के रूप में प्रतिभागियों को रुपए दिये जाते हैं।

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