हिन्दू नाम का सच : हाई कोर्ट इलाहाबाद।।
हिंदू नाम का कोई धर्म नही हैं। हिन्दू फ़ारसी का शब्द है। हिन्दू शब्द न तो वेद में है, न पुराण में ,न उपनिषद में ,न आरण्यक में ,न रामायण में, न ही महाभारत में। स्वयं दयानंद सरस्वती कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है। 1875 में ब्राह्मण दयानन्द सरस्वतीने आर्य समाज की स्थापना की, हिन्दू समाज की नहीं। अनपढ़ ब्राह्मण भी यह बात जानता है। ब्राह्मणोने स्वयं को हिन्दू कभी नहीं कहा। आज भी वे स्वयं को ब्राह्मण कहते हैं, लेकिन सभी शुद्रों को हिन्दू कहते हैं। जब शिवाजी हिन्दू थे, और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे, तथा कथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे, तब भी पुना के ब्राह्मणोने उन्हें शुद्र कह राजतिलक से इंकार कर दिया। घुस का लालच देकर ब्राह्मण गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया। हिंदू का सच,गगाभट्ट ने “गागाभट्टी” लिखा, उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन, राजतिलक के दौरान पौराणिक मंत्र ही पढे गए, वेदों के नहीं। तो शिवाजी को हिन्दू तब नहीं माना। और ब्राह्मणोने मुगलों से कहा, हम हिन्दू नहीं हैं, बल्कि तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं, परिणामतः सारे हिंदुओं पर जिझिया कर, टॅक्स लगाया गया, लेकिन ब्राह्मणो को मुक्त रखा गया। 1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरू हुई। ब्रिटेन में भी दलिल दी गई की वयस्क मताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओं को दिया जाए । लेकिन लोकतंत्र की जीत हुई। वयस्क मताधिकार सभी को दिया गया। देर सबेर ब्रिटिश भारत में भी यही होना था। भटमान्य तिलकने इसका विरोध किया। कहा “तेली, तंबोली, माली, कुणबटों को संसद में जाकर क्या हल चलाना है”। ब्राह्मणोने सोचा, यदि भारत में वयस्क मताधिकार यदि लागू हुआ तो, अल्पसंख्यक ब्राह्मण मक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे। अल्पसंख्यक ब्राह्मण कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकें��
